وَكَاَيِّنْ مِّنْ اٰيَةٍ فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ يَمُرُّوْنَ عَلَيْهَا وَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُوْنَ ( يوسف: ١٠٥ )
And how many
وَكَأَيِّن
और कितनी ही
of
مِّنْ
निशानियाँ हैं
a Sign
ءَايَةٍ
निशानियाँ हैं
in
فِى
आसमानों में
the heavens
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों में
and the earth
وَٱلْأَرْضِ
और ज़मीन में
they pass
يَمُرُّونَ
वो गुज़रते हैं
over it
عَلَيْهَا
उन पर
while they
وَهُمْ
और वो
(are) from them
عَنْهَا
उनसे
the ones who turn away
مُعْرِضُونَ
ऐराज़ करने वाले हैं
Wakaayyin min ayatin fee alssamawati waalardi yamurroona 'alayha wahum 'anha mu'ridoona (Yūsuf 12:105)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
आकाशों और धरती में कितनी ही निशानियाँ हैं, जिनपर से वे इस तरह गुज़र जाते है कि उनकी ओर वे ध्यान ही नहीं देते
English Sahih:
And how many a sign within the heavens and earth do they pass over while they, therefrom, are turning away. ([12] Yusuf : 105)