وَلَىِٕنْ اَذَقْنَا الْاِنْسَانَ مِنَّا رَحْمَةً ثُمَّ نَزَعْنٰهَا مِنْهُۚ اِنَّهٗ لَيَـُٔوْسٌ كَفُوْرٌ ( هود: ٩ )
And if
وَلَئِنْ
और अलबत्ता अगर
We give man a taste
أَذَقْنَا
चखाऐं हम
We give man a taste
ٱلْإِنسَٰنَ
इन्सान को
(of) Mercy from Us
مِنَّا
अपनी तरफ़ से
(of) Mercy from Us
رَحْمَةً
रहमत
then
ثُمَّ
फिर
We withdraw it
نَزَعْنَٰهَا
छीन लें हम उसको
from him
مِنْهُ
उससे
indeed, he
إِنَّهُۥ
बेशक वो
(is) despairing
لَيَـُٔوسٌ
अलबत्ता बहुत मायूस होने वाला
(and) ungrateful
كَفُورٌ
बहुत नाशुक्रा है
Walain athaqna alinsana minna rahmatan thumma naza'naha minhu innahu layaoosun kafoorun (Hūd 11:9)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यदि हम मनुष्य को अपनी दयालुता का रसास्वादन कराकर फिर उसको छीन लॆं, तॊ (वह दयालुता कॆ लिए याचना नहीं करता) निश्चय ही वह निराशावादी, कृतघ्न है
English Sahih:
And if We give man a taste of mercy from Us and then We withdraw it from him, indeed, he is despairing and ungrateful. ([11] Hud : 9)