وَاصْنَعِ الْفُلْكَ بِاَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا وَلَا تُخَاطِبْنِيْ فِى الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا ۚاِنَّهُمْ مُّغْرَقُوْنَ ( هود: ٣٧ )
And construct
وَٱصْنَعِ
और तू बना
the ship
ٱلْفُلْكَ
कश्ती
under Our Eyes
بِأَعْيُنِنَا
हमारी निगाहों के सामने
and Our inspiration
وَوَحْيِنَا
और हमारी वही के मुताबिक़
and (do) not
وَلَا
और ना
address Me
تُخَٰطِبْنِى
तू मुख़ातिब होना मुझसे
concerning
فِى
उनके बारे में जिन्होंने
those who
ٱلَّذِينَ
उनके बारे में जिन्होंने
wronged;
ظَلَمُوٓا۟ۚ
ज़ुल्म किया
indeed they (are)
إِنَّهُم
बेशक वो
the ones (to be) drowned"
مُّغْرَقُونَ
ग़र्क़ किए जाने वाले हैं
Waisna'i alfulka bia'yunina wawahyina wala tukhatibnee fee allatheena thalamoo innahum mughraqoona (Hūd 11:37)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम हमारे समक्ष और हमारी प्रकाशना के अनुसार नाव बनाओ और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करो। निश्चय ही वे डूबकर रहेंगे।'
English Sahih:
And construct the ship under Our observation and Our inspiration and do not address Me concerning those who have wronged; indeed, they are [to be] drowned." ([11] Hud : 37)