وَاِذَا تُتْلٰى عَلَيْهِمْ اٰيَاتُنَا بَيِّنٰتٍۙ قَالَ الَّذِيْنَ لَا يَرْجُوْنَ لِقَاۤءَنَا ائْتِ بِقُرْاٰنٍ غَيْرِ هٰذَآ اَوْ بَدِّلْهُ ۗ قُلْ مَا يَكُوْنُ لِيْٓ اَنْ اُبَدِّلَهٗ مِنْ تِلْقَاۤئِ نَفْسِيْ ۚاِنْ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا يُوْحٰٓى اِلَيَّ ۚ اِنِّيْٓ اَخَافُ اِنْ عَصَيْتُ رَبِّيْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيْمٍ ( يونس: ١٥ )
Waitha tutla 'alayhim ayatuna bayyinatin qala allatheena la yarjoona liqaana iti biquranin ghayri hatha aw baddilhu qul ma yakoonu lee an obaddilahu min tilqai nafsee in attabi'u illa ma yooha ilayya innee akhafu in 'asaytu rabbee 'athaba yawmin 'atheemin (al-Yūnus 10:15)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और जब उनके सामने हमारी खुली हुई आयतें पढ़ी जाती है तो वे लोग, जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते, कहते है, 'इसके सिवा कोई और क़ुरआन ले आओ या इसमें कुछ परिवर्तन करो।' कह दो, 'मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं अपनी ओर से इसमें कोई परिवर्तन करूँ। मैं तो बस उसका अनुपालन करता हूँ, जो प्रकाशना मेरी ओर अवतरित की जाती है। यदि मैं अपने प्रभु की अवज्ञा करँस तो इसमें मुझे एक बड़े दिन की यातना का भय है।'
English Sahih:
And when Our verses are recited to them as clear evidences, those who do not expect the meeting with Us say, "Bring us a Quran other than this or change it." Say, [O Muhammad], "It is not for me to change it on my own accord. I only follow what is revealed to me. Indeed I fear, if I should disobey my Lord, the punishment of a tremendous Day." ([10] Yunus : 15)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जब उन लोगों के सामने हमारी रौशन आयते पढ़ीं जाती हैं तो जिन लोगों को (मरने के बाद) हमारी हुजूरी का खटका नहीं है वह कहते है कि हमारे सामने इसके अलावा कोई दूसरा (कुरान लाओ या उसका रद्दो बदल कर डालो (ऐ रसूल तुम कह दो कि मुझे ये एख्तेयार नहीं कि मै उसे अपने जी से बदल डालूँ मै तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरी तरफ वही की गई है मै तो अगर अपने परवरदिगार की नाफरमानी करु तो बड़े (कठिन) दिन के अज़ाब से डरता हूँ