وَمَا كَانَ لِنَفْسٍ اَنْ تُؤْمِنَ اِلَّا بِاِذْنِ اللّٰهِ ۗوَيَجْعَلُ الرِّجْسَ عَلَى الَّذِيْنَ لَا يَعْقِلُوْنَ ( يونس: ١٠٠ )
And not
وَمَا
और नहीं
is
كَانَ
है
for a soul
لِنَفْسٍ
किसी नफ़्स के लिए
to
أَن
कि
believe
تُؤْمِنَ
वो ईमान लाए
except
إِلَّا
मगर
by (the) permission
بِإِذْنِ
अल्लाह के इज़्न से
(of) Allah
ٱللَّهِۚ
अल्लाह के इज़्न से
And He will place
وَيَجْعَلُ
और वो डाल देता है
the wrath
ٱلرِّجْسَ
गंदगी को
on
عَلَى
उन पर जो
those who
ٱلَّذِينَ
उन पर जो
(do) not
لَا
नहीं वो अक़्ल रखते
use reason
يَعْقِلُونَ
नहीं वो अक़्ल रखते
Wama kana linafsin an tumina illa biithni Allahi wayaj'alu alrrijsa 'ala allatheena la ya'qiloona (al-Yūnus 10:100)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
हालाँकि किसी व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं कि अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई क्यक्ति ईमान लाए। वह तो उन लोगों पर गन्दगी डाल देता है, जो बुद्धि से काम नहीं लेते
English Sahih:
And it is not for a soul [i.e., anyone] to believe except by permission of Allah, and He will place defilement upon those who will not use reason. ([10] Yunus : 100)